रस (Sentiments)

रस का शाब्दिक अर्थ है आनंद , काव्य को पढ़ने या सुनाने से जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते है |
रस को काव्य की आत्मा / प्राण माना जाता है

हिंदी में रसो की संख्या 9 है , जिसे नवरस कहा जाता है | बाद में आचार्यो ने 2 और भावो को स्थाई भाव की मान्यता दे दी इस प्रकार स्थाई भावो की संख्या 11 तक पहुंच गयी तदनुसार रसो की संख्या भी 11 तक पहुंच गयी |

रस के अवयव या अंग

रस के चार अवयव या अंग है

  1. स्थायी भाव
  2. विभाव
  3. अनुभाव
  4. संचारी या व्यभिचारी भाव

रस और उनके स्थायी भाव को याद करने की ट्रिक :

क्रमांक रस का प्रकार स्थायी भाव
1 करुण शोक
2 हास्य हास्
3 श्रृंगार रति
4 वीर उत्साह
5 भयानक भय
6 शांत निर्वेद
7 अदभुत विस्मय
8 रौद्र क्रोध
9 विभत्स जुगुप्सा

वात्सल्य रस को दसवाँ एवं भक्ति को ग्यारहवाँ रस भी माना गया है। वत्सल तथा भक्ति इनके स्थायी भाव हैं। भक्ति रस को ११वां रस माना गया है .

1- करुण रस

करुण रस का स्थायी भाव शोक होता है
करुण रस में किसी के विनाश, वियोग एवं प्रेमी से विछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दुःख या वेदना उत्पन्न होती है उसे करुण रस कहते हैं

यधपि वियोग श्रंगार रस में भी दुःख का अनुभव होता है लेकिन वहाँ पर दूर जाने वाले से पुनः मिलन कि आशा बंधी रहती है

अर्थात् जहाँ पर पुनः मिलने कि आशा समाप्त हो जाती है वहां करुण रस होता है इसमें निःश्वास, छाती पीटना, रोना, भूमि पर गिरना आदि का भाव व्यक्त होता है

उदाहरण :
धोखा न दो भैया मुझे, इस भांति आकर के यहाँ
मझधार में मुझको बहाकर तात जाते हो कहाँ

मुख मुखाहि लोचन स्रवहि सोक न हृदय समाइ।
मनहूँ करुन रस कटकई उत्तरी अवध बजाइ॥

2- हास्य रस

हास्य रस का स्थायी भाव हास होता है
हास्य रस का अर्थ सुखांतक अथवा कामदी होता है। जहाँ हास की उत्पत्ति होती है इसे ही हास्य रस कहते हैं

उदाहरण :
बन्दर ने कहा बंदरिया से चलो नहाने चले गंगा। बच्चो को छोड़ेंगे घर पे वही करेंगे हुडदंगा॥

3- श्रृंगार रस

श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति होता है
श्रृंगार रस के अंतर्गत प्रेम, सौन्दर्य, प्रकृति, सुन्दर वन, वसंत ऋतु, पक्षियों का चहचहाना आदि के बारे में वर्णन किया जाता है
उदाहरण :
दरद कि मारी वन-वन डोलू वैध मिला नाहि कोई
मीरा के प्रभु पीर मिटै, जब वैध संवलिया होई

बसों मेरे नैनन में नन्दलाल
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल

4- वीर रस

वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है
वीर रस के अंतर्गत जब कोई कठिन कार्य अथवा युद्ध में सफल होने से मन में जो उत्साह उत्पन्न होता है उसे ही वीर रस कहते हैं इसमें शत्रु पर विजय प्राप्त करने, कोई कठिन काम को समाप्त करने आदि में जो उत्साह उत्पन्न होता है

उदाहरण :
बुंदेले हर बोलो के मुख हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी

हम मानव को मुक्त करेंगे, यही विधान हमारा है
भारत वर्ष हमारा है,यह हिंदुस्तान हमारा है

5- भयानक रस :

भयानक रस का स्थायी भाव भय होता है
वस्तुओं को देखने या सुनने से अथवा शत्रु इत्यादि के विद्रोहपूर्ण आचरण की स्थिति में भयानक रस उद्भुत होता है।
अथवा जहां हम भय का अनुभव करते है वहां भयानक रस होता है

उदाहरण :
एक और अजगरहि लखी एक और मृगराय.
बिकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाए.

इसके शेर और अजगर इसके आलंबन है.

6- शांत रस :

शांत रस का स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है
शांत का अर्थ किसी अवस्था को शिथिलता अथवा चुप्पी से है।

उदाहरण :
माटी कहै कुम्हार से,तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आऐगा,मैं रौंदूगी तोय।।

7- अदभुत रस :

अदभुत रस का स्थायी भाव विस्मय (आश्चर्य) होता है
उदाहरण :
अखिल भुवन चर-अचर सब , हरि मुख में लखि मातु |
चकित भई गद्गद वचन, विकसित दृग पुलकातु ||

8- रौद्र रस :

रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध होता है
जब किसी व्यक्ति द्वारा दुसरे मित्र या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरु आदि का अपमान करने या निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं
जैसे – मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शस्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि |
उदाहरण :
श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्षोभ से जलने लगे।
सब शील अपना भूल कर करतल युगल मलने लगे॥
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे हो गए उठ कर खड़े॥

9- विभत्स रस :

विभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा होता है
किसी बात को सुन कर मन में घृणा या ग्लानि हो या घृणित वस्तुओं, घृणित चीजो या घृणित व्यक्ति को देखकर या उनके संबंध में विचार करके या उनके सम्बन्ध में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा या ग्लानि ही वीभत्स रस कि पुष्टि करती है दुसरे शब्दों में वीभत्स रस के लिए घृणा और जुगुप्सा का होना आवश्यक होता है

उदाहरण :

सिर पर बैठो काग, आँखि दोउ खात निकारत
खींचत जी भहिं स्यार, अतिहि आनन्द उर धारत
गिद्ध जाँघ कह खोदि-खोदि के मांस उचारत
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खान बिचारत

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